मेरी कहानी Harsh Parmar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मेरी कहानी

उंगली को पकड़ कर सिखलाता,
जब पहला क़दम भी नही आता…
नन्हे प्यारे बच्चे के लिए,
पापा ही सहारा
आज भी याद आतें है बचपन के वो दिन
जब उगली मेंरी पकडं कर आप ने चलना सिखाया।
इस तरह जिन्दगी में चलना सिखाया
कि जिन्दगी की हर कसौटी पर आपको अपने करीब पाया बन जाता।
इस कहानी को लिखना एक ही मकसद है। क्यों की मेरी एक पागल मुस्कान को स्टोरी पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। और उसने मुझे कहा कि तुम गीत कार हो तो कहानी भी अच्छी लीखोंगे फिर मैने सोचा कहानी ही लिख दू।

मेरा नाम अबुर है और में अहमदाबाद से हूं।
और छोटे से गांव में रहेता हूं। घर की फैमिली में मम्मी पापा हम चार भाई और दो बहेन है।
में अपनी कहानी आपके सामने पेश कर रहा हूं। बरसात का मौसम था में और पापा स्कूल की और चल पड़े मुझे स्कूल में दाखिल कराने के लिये।
वो भी तेज बारिश में भीगते भीगते । में और पापा पूरी तरहा बारिश में भीग गये थे।

स्कूल में आए और मेरा स्कूल में दाखिल कर दिया पहला दिन तो पता ही नहीं चला कैसा गया। पर अगले दिन स्कूल में बहुत मज़ा आया। टीचर भी बहुत अच्छे थे और अच्छी तरहा पढ़ाते और लिखाते भी। स्कूल में पढ़ने में बहुत मन रहता और दोपहर में स्कूल में खाना भी मिलता दाल और रोटी और चावल क्या मज़ा आता खाने में।
धीरे धीरे साल बीतते गए और स्टडी में मन लगने लगा।
में स्कूल से घर आता तो सीधा खेत पे मोम पापा के साथ काम करने लगता। कभी कभी बुखार हो जाता तो स्कूल जाना नहीं भूलता कभी। स्टडी में अच्छा मन लगता और एग्जाम आनेवाले थे तो एग्जाम की तैयारियां करने लगा पर इतना टाइम नहीं मिलता था मुझे क्यों की में स्टडी करता और खेत पे भी काम करता तो कम टाइम मिलता मुझे पढ़ने में फिर एग्जाम आए और एग्जाम में भी अच्छे मार्क्स से पास हुआ।
रिजल्ट भी पहले नंबर पर आने लगा तो पापा और मम्मी बहुत खुशी हुए। मैने भी पढाई में ज्यादा ध्यान देने लगा।

दोपहर में एक बजे जब खाने के लिए बेल की घंटी बजी तो सब जल्दी जल्दी दौड़ने लगे और में तो सबके आगे ? में पीछे क्यों रहूं मुझे भी खाना है ? और में अपने सभी दोस्त के साथ खाने बैठ गया। खाना खाकर हम सब दोस्त क्रिकेट खेलने चले गये वैसे मुझे क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता है क्यों की क्रिकेट मेरा फेवरेट सोख है जो में कभी छोड़ नहीं सकता ? एक बार क्रिकेट खेलते खेलते बोल मेरी आंख पे लग गया तब बहुत रोया और दर्द भी बहुत हो रहा था। थैंक्स भगवान का की मेरी आंख को कुछ हुआ नहीं और अगले छुट्टी वाले दिन तो हम सब दोस्त पूरा दिन क्रिकेट खेले ?
मेरे दोस्त का नाम आपको बताना भूल गया मेरा जिगरी दोस्त अर्जुन, गनपत, प्रणव, उत्तम, हम सब दोस्त मिल जुलकर खाना खाते और पढ़ाई में भी आगे थे। एक दिन मेरा दोस्त उत्तम ने मुझे बोला यार तू हर बार पहले नंबर पर आता है तो मैने बोला यार तू सायद पढ़ाई में ध्यान नहीं देता होगा।
स्कूल में बहुत लड़की थी पर में सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ही ज्यादा ध्यान देता था। सच कहूं तो उत्तम मुझसे बहुत जलता क्यों की में उसको आगे ही नहीं निकलने देता था ?
पर मैने थान लिया था कि मुझे स्टडी में फर्स्ट नंबर लाना है और मैने सातवीं कक्षा तक रिजल्ट भी अच्छा आया फर्स्ट नंबर लाया मैने हर बार मेरे सर मुझे बोलते की तू आगे जाके जरूर कुछ ना कुछ बनेगा । मैने सर को थैंक्स कहा और में अपने दोस्तो के साथ घर की ओर चला पड़ा। उस दिन खुश बहुत था पर थकान भी इतनी थी क्यों की उस दिन हम सब फ्रेंड्स स्कूल में क्रिकेट खेल रहे थे ?
जिंदगी में बहुत थुकरे खाई गिरा और फिर उठा पर अपना हौसले को नहीं खोने दिया मैने।
होली का त्योहार था में अपने अंकल के यहां जा रहा था मेरे अंकल का घर मेरे पास में है हम लोग खेत पे ही रहते है। अंकल के घर जा रहा था शामको तब मुझे किसी साप ने मेरे पैर पर काट दिया और में चिल्लाने लगा तब सब लोग आ गए और मुझे गांव में जल्दी लेके चले जहा नाग देवता का मंदिर था वहां। जल्दी मंदिर पहुंच गए पर वहा पुजारी नहीं थे। तब मेरे पापा ने पुजारी को लेने खेत पे चले गए और जल्दी वापस आ गए। मेरे पैर में बहुत दर्द हो रहा था पर मैने हिम्मत नहीं हारी । पापा पुजारी को लेके जल्दी आ गए और पुजारी ने मेरे पैर को देखा तब पैर से खून निकल रहा था और पुजारी ने जहा साप ने काटा था वहां पर अपना मुंह लगाया और सारा जहर पी पी के थूक दिया तब मुझे थोड़ी राहत मिली। फिर पुजारी ने मुझे नीम के पत्ते खिलाने को कहा तो मैने खा लिया बहुत कड़वे थे। फिर हम लोग वहां से घर आ गए और मैने आराम किया दो तीन दिन । मेरे पैर में बहुत सूजन थी धीरे धीरे सूजन कम होने लगी। मेरी मॉम ने कहा कि तुम थोड़े दिन स्कूल मत जाओ पर मैने मोम को बोला कि मुझे स्कूल जाना है चाहे दर्द कितना भी ना हो और में अगले दिन स्कूल चला गया।

मैने किस्मत में क्या मांगा था और मेरी किस्मत मुझे कहा लेकर जा रही है खुद पता नहीं था मुझे की अब आगे क्या होनेवाला है ??
मै सात तक ही पढ़ पाया क्यों की मेरे घर की हालात कुछ और थी। में पापा को बोला कि मुझे आगे पढ़ना है तब मेरे बड़े भैया ने मुझे मना कर दिया कि पढ़ाई करके कोनसी नोकरी पा लेगा तू.
तब मुझे बहुत गुस्सा आया कि क्या बोलु। मोम पापा ने भाई को बोला कि पढ़ाओ पर भैया ने एक ना सुनी मेरी बात को। फिर भैया अपनी जॉब पे चले गए सूरत।
में तीन महीने घर रेह कर मोम पापा के साथ खेतमे काम करने लगा। खेत में हम लोगो का गुजरात चले इतना ही कमा लेते, पर मैने फैसला कर लिया कि अब में भी जॉब करूंगा और मोम पापा को कमा कर पैसा दूंगा। फिर मैने मोम पापा को बोला कि भाई को बोले मुझे जॉब पर काम सिखाने के ले जाए। फिर भैया गाव आए और मुझे लेके गए अपने साथ सूरत में डायमंड की जॉब सिखाने के लिए।
मैने धीरे धीरे जॉब सीख लिया कभी भैया की मार पड़ती रहती. क्यों की काम ठीक से सीखा नहीं था तब पर अब कोई दिक्कत नहीं है। में काम सीख गया और काम भी अच्छा करने लगा लगा।
अब डायमंड में दिंनका काम चारसौ पांच्छो का करने लगा । महीने का १२/१३००० हजार का काम करने लगा और उस में से खाने का और खर्च करने का रखता और बाकी पैसे घर पे भेज देता। और मोम की दवाई भी टाइम पे भेज देता कि कोई परेशानी ना रहे और महीने में एक बार सूरत से अपने गांव चला जाता मोम पापा और बहिन को मिलने।
!क्रमश!
आगे की कहानी के लिए अगले भाग का थोड़ा इंतजार करे।
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